एक लड़की की ची़ख सुनता कौन,
सब देखते है तमाशा और ज़माना हो गया मौन।
तकलीफ इसकी मदद को पुकारती,
जिंदा रहकर हर दिन खुदको मारती।
गलती करे कोई और सजा मिले इसे,
अपनी इज्जत पर दाग के किस्से सुनाए किसे।
अपने घर में बनकर रहती मेहमान,
शर्म, लज्जा, सादगी ही है क्या इसकी पहचान।
मजाक बन रहा इसका ईमान,
दरिंदे बन रहे कुछ इंसान।
क्यों करते इसकी इज्ज़त को बदनाम,
औरत का अपमान करना ही है क्या कुछ जालिमों का काम।
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