अंध तमस, हृदय खिन्न अति
कंठ शुष्क, नीरस मृदु वेणु
भावशून्य अंतः,मंद श्वास गति
परम विशाद माया, देह रेती सम रेणु
ऊसर भाव, प्रेम न उपजे
कठोर जीवनरण, विजय नितांत दुर्गम
सघन भीषण वन, मार्ग न सूझे
हिमीभूत सर्व विश्व, ज्वलंत तपन
कर कृपा हे मात परम
निर्बाध हो असित मारीचिका
विस्तृत कर प्रबुद्ध शरण।।
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