मंदिरों की घंटीयो से मस्जिदों की अजान तक,
हिन्दू की राम-राम से मुसलमान की सलाम तक,
भाईचारे के नाम पर हुए जो कत्लेआम तक,
जिस लड़ाई को हमने कभी चुना ही नहीं वो लड़नी है हमें अनंत-काल तक,
फिर सोचता हूँ -
नफरत का ये सिलसिला होगा शायद कल शाम तक,
भक्त हूँ महाकाल का लिखूंगा मैं भी सच्चाई आखिरी साँस तक।
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