ज़हनसीब पाती हूँ खुद को..
अपने उभरते सूरज को,
काम से लौटने पर शांत लाल सा पा कर।
तेरी थकान से भरी सूरत मुझे ढलते
उस लाल सूरज की याद दिलाती।।
ज़हनसीब पाती हूँ खुद को..
शाम की तेरी धीमी सी धूप की किरन जब मुझे,
बीती रात के उस दागी चाँद की यादों से
मीलों दूर ले जाती।
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