क्यों तुम लड़की बचाओ की रट लगाते हो?
क्यों तुम आगे बढ़ने की मांग करते हो?
मैंने तो मंदिर के बाहर ही सुना है,
"बाझन को 'पुत्र' देत, निर्धन को माया!"
अपने पड़ोसी की बेटी की शादी में ही मैंने,
पंडित जी को "पुत्र भवः" का वरदान देते सुना है!
मैंने तो सुना है, लड़की घर की लक्ष्मी होती है,
उसी लक्ष्मी को दहेज संग विदा होते देखा है!
मैंने तो घर की इज़्ज़त बेटी को ही
घर के ही मान बेटों के हाथ लूटते देखा है!
उम्र भर रक्षा करूँगा कहने वाले पति को ही मैंने
रोज़ रात उस आबरू को रौंदते देखा है!
बचपन में अपने बेटे को दूध पिला बड़ा करती उस औरत को,
ताउम्र अपनी बेटी को दूसरे बेटों से बचाते देखा है!
क्यों तुम लड़की बचाओ की रट लगाते हो?
क्यों तुम आगे बढ़ने की मांग करते हो?
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