क्या करोगे?
जब भी देखो, हिंदू मुस्लिम की रट लगाए बैठे हैं,
अपनी सत्ता खोने के डर से, वो पगलाये बैठे हैं,
जब आस्था कोई काम न आयी, कोरोना की मार में ,
बेचारे शर्म के मारे कहीं, अपना मुँह छिपाये बैठे हैं।
गंगा पर भी खेले दांव, वोटों के उन सौदागरों ने,
पर बाजी उलटी पड़ गई तो, तिलमिलाये बैठे हैं.
गंगा मैया समेट रही है, बेटों को अपनी बाहों में,
और वो अखबारों में अपनी, फोटू चिपकाये बैठे हैं।
गिरने की एक सीमा होती है, पर यहाँ तो हद हो गई,
गिरने वाले गिरकर भी, अपनी छाती फुलाये बैठे हैं.
कि उठा रहे हैं उनको, उन बहते-सड़ते मुर्दों के भाई ही,
जो सबकुछ गवाँकर भी, मुर्दों से उम्मीद लगाये बैठे हैं।
खैर, तुम्हारे सब्र का इम्तिहान है, दे ही दो तो अच्छा है।
कि तेरे भरोसे ही वो, रामराज्य का सपना सजाए बैठे हैं,
यह बात अलग है कि, तुम मर रहे हो ऑक्सीजन बिन,
पर क्या करोगे, वो मरने वालों को ही देशभक्त बताये बैठे हैं,!!
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