एक संदूक रखी थी अंदर बहुत अंदर,
सबकी नजर से दूर उसके अंतर्मन में,
चुपके से खुलकर कभी आँसू झलकाती,
कभी बिखेरती कुछ खुशियों के मोती,
कर देती उसे फिर तैयार लड़ने को,
वर्तमान परिस्थितियों से जूझने को,
पहले से मजबूत, आत्मविश्वास लिए
कमरकस कर फिर वह खड़ी हो जाती,
अपनी पहाड़ सी परेशानियों के सामने,
स्वयं उनसे भी बड़ी एक चट्टान बनकर...
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