ईद तो आई है लेकिन, अब वो बात ही ना रही
देख मातम हर तरफ, मनाने की ख्वाहिश ही ना रही
इक तरफ़ वबा तो दूजी तरफ़ ज़ालिमों का कहर
देख इंसानियत की हालत, झेलने की ताक़त ही ना रही
गले लगना तो दूर, मुसाफः से भी डर रहा इंसान
भाइयों में गर्म-जोशी की, अब वो हालत ही ना रही
ज़ुल्म इंतिहा को है, हाथ धरे है आलम-ए-इस्लाम
गीदड़ को भी ललकार ने की, वो जुर्रत ही ना रही
खुदावंद दूर कर, इन सियाह घटाओं को 🤲
अब और बर्दाश्त करने की, वो हिम्मत ही ना रही
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