मेरे मायने में तर्क किसी मुद्दा को शुरू करने से पहले, उससे होने वाले नुकसान और फायदे पर किए जाते हैं.. ना कि बीते हुए पल को वर्णन करता हैं.. और स्वार्थ का दूसरा नाम राजनीति हैं.. मेरा सोच ही मेरा स्वाभिमान है...
जज्बातों के आहत के बाद, बातों की कोई महत्व नहीं रहती.. ठिक वैसे ही जैसे राजनीति में, चुनाव से पहले जनता को, बहुत सारे मुद्दे और उम्मीद दिखाने वाले राजनेता, चुनाव जितने के बाद, जनता के प्रति उनका कोई मुद्दा ,ईमानदारी नहीं दिखता...