ये जहाँ चल रहा है,बस तेरी हीं रौशनी से
जैसे कोई चमकता सोना हो रौशनी से
कोल्हू मे हीं कुचल,के रसधार तु बनाता
बेनाम हैं जो इंसां बानाम उन्हे बनाता
फिर क्यो नहीं डरे हैं, इसां तेरी नजर से
ये जहाँ..........................।
पीढियों से चल रहे सब बेनाम के सफर पे
कबसे जला रहें हैं टुकडे़ खुद के तन के
देखो तो आदमी भी मशीन हो गया है
कुदरत की इक महक से कहीं दुर हो गया है
मरहुम हो गया है अपने हीं वो जमीं से
ये जहाँ..............................
कुदरत से है जुदा वो, कुदरत कहाँ जुदा है
उसके सभी करम मे , कुदरत का फलसफा है
हर शै मे है बसी हुइ ,कुदरत की ताजगी तो
हर शाम के गुजरते प्रभा की बानगी है
ये जहाँ ..............................।।
हर रोज जमीं पे आती बहार ताजी ताजी
बन के करम खुदा का, फानूस सी
बरसती
वो नजर मे है सबके,सबपे नजर है उसकी
ये जहाँ खुदा के दिल मे धड़कन सी है धड़कती
ये जहाँ............................।।
राजीव
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