ग़ज़ल के चंद लफ्जों में तेरी ही बात अब होगी उन्ही मिसरों में मेरी भी कहीं औकात अब होगी सियासत है अगर ये चाहतों का रोज़ टकराना सँभलना ए मेरे हमदम किसी की मात अब होगी.!!
भीड़ भीड़ ना कीजिए ये भीड़ बढ़ावे रोग दूरी धरनी है हमें अरे! कब समझेंगे लोग अरे! कब समझेंगे लोग नियंत्रण बहुत जरूरी बात करें गर आप रखें फिर पूरी दूरी कहत कवि कविराय अभी भी है कुछ मौका रखें हम सब साफ घर-शहर, चूल्हा चौका