जीते जी राहत ना मिली ए दिल
अब मरने में हमारे बवाल कैसा...
हंसने में थी जमाने की पाबंदियां तो
अब ख़ामोशियों पर ये सवाल कैसा...
नहीं पूछते ख़ैरियत हमारी तो रंज क्या
एक ज़र्रा ही हूँ फिर ख़्याल कैसा....
रेख़्तां भी हिला नहीं उसकी इनायत के बग़ैर
फिर खुद से भी और तुझसे भी ग़िला कैसा...
एक ख़लिश रह गई तेरे जाने के बाद कि
तूने भी इश्क़ किया होता मेरे हाल जैसा....
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