सुनो माँ! ...... तुम दिल धड़कन जान हो माँ तुम मेरी पहचान हो तेरी साँसों में मेरी जान बसती है जो हँसे तू तो मैं भी हँसती हूँ तू कभी न उदास होना कभी न मुझ पर विश्वास खोना बेटी हूँ तो क्या बेटे का हर फर्ज निभाऊँगी तेरी दी हर साँसों का कर्ज चुकाऊँगी
दबे हुए एहसासों का पुलिन्दा है टूटी हर ख़्वाहिश फिर भी अरमान जिन्दा है कुछ कही कुछ अनकही बातों की गठरी है कभी खिलखिलाई कभी जिदंगी बिखरी है हौसले के सूत से खुद को बाँधा है छिटक कर गिरा जो ख्वाब कोई प्यार से उसको साधा है दर्द तो अब इस 'कृति' का बाशिंदा हर मुस्कुराहट फिर भी अब तलक जिन्दा है
ए जिदंगी! सोचती हूँ तुझे लिखूँ तेरी मनमानियाँ लिखूँ या अपनी नादानियाँ लिखूँ अज्जियत लाखों है फिर भी मुस्कुरा रहे है जिदंगी तुझे कुछ ऐसे निभा रहे है कभी हबीब कभी रकीब है जिदंगी! तू भी अजीब है कभी बेइंतहा खिलखिलाते लम्हे है कभी दर्द से डर कर हम सहमे है ए नादान ! अब तुझको ठेंगा दिखाना है रोक कर अपनी साँसों को तुझसे जीत जाना है