न जाने मेरी जिंदगी ने किस सुर में राग गाया है
जो मेरी किस्मत पर इतना घना कोहरा छाया है
गर्दिशों से गुजर रही हैं आजकल जिंदगी मेरी
मैंने एक के बाद एक जख़्मों को तैयार पाया है
पलक झपकते ही बदल देते ये रंग मेरे अपने
महज लोगो को लगता हैं क्या मुकाम आया है
इश्क में हर्फ़-दर-हर्फ़ शिद्दत बढ़ती जा रही है
साथ चलता है मेरे ये ना जाने किसका साया हैं
अब हर साजिश का इलाज सम्भव भी तो नहीं
परेशानीयों को कब किसने मर्जी से बुलाया है
समझना जरूरी है रहबर तो तेरा ढोंगी निकला
'कपिल' तू बिन बादलों के बरसात में नहाया हैं
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