उसकी याद ने इस दिल को कुछ ऐसा जलाया। अश्कों को भी अब इसे बुझाना है मुश्किल। काश ये रूह हो जाए इस जिस्म से फना ए जिस्म कर दे कुछ ऐसा गुनाह। फिर ना यह दिल होगा और ना इस दिल की जलन।
हम किसी को क्या रुलाएंगे हम तो खुद अपने आंसुओं में डूब कर मर जाएंगे। बसा तो है वह कुछ इस तरह से हमारे दिल में धड़कन नहीं नाम निकलता है उसका हमारे दिल से।
इश्क़ की कोई उम्र नहीं होती ओर ना ही कोई दौर.... एक रिश्ता बंधा था उम्मीद से इश्क़ मुकम्मल किया था दिल भी जिद्दी परिंदा बन बैठा था जो घायल भी उम्मीदों से हुआ और जिंदा भी उम्मीदों पर हैं ....