अक्सर जब मैं चुप रहती हूँ,
ज़िन्दगी से वक़्त की शिकायत करती हूं...
वक़्त के काफ़िले को शायद युहीं चलना था,
मेरी मंजिल की नई शुरुआत पर ही इसे बदलना था...
अभी तो मिले थे,वक़्त कीतनी जल्दी गुज़र गया,
क्या कहा? बिछड़ने का वक़्त हो गया...!!!
आज जब ये वक़्त साथ नही,
यहाँ कोई भी अपना नही...
ज़िन्दगी ने भी हँस कर जवाब दिया मुझे,
वक़्त की क़ीमत को अभी जान लो,
जो ख़्वाब है सच कभी होता नही,
औऱ ये वक़्त है,जो कभी किसी एक का होता नही....!!
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