हम लड़ पड़े इस बात पर कि क़ुसूर किसका था, ये भूल गए कि जो भी हो रिश्ता अपना था। नज़र-अंदाज़ करना जान के, ग़लतफ़हमियां थीं बीच में, जब एहसास हुआ तो फिर लगा, ये कोई बुरा सपना था। वो और लोग थे जिन्हें प्यार में पड़कर नया जहां मिला, ये हम हैं कि जिन्हें प्यार में पड़कर सिर्फ तड़पना था ।।
वक़्त ज़ाया न कर नया रिश्ता बनाने में, थोड़ी कोशिश तो कर पुरानों को निभाने में, रुक जा की अब दे न मुझे ज़ख्म और, सदियां लगेंगी इन्हीं पर मरहम लगाने में,
यूं तेरा मुझको निगाह बदल-बदल कर देखना, अच्छा होता तेरा मुझको संभल कर देखना। ये इनायत मेरे क़ातिल की मुझपर हो गई, मेरी आंखों में मुसलसल मेरा क़तल कर देखना।
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