मैं उसकी यादों से क़तरा क़तरा फ़िसल रही थी वो मेरी आँखों से अश्क़ अश्क़ बह रहा था हर आँख नम यहाँ हर ज़ुबाँ खामोश अंदर अंदर जाने कौन कितने दर्द सह रहा था....
कतरा कतरा चढ़ जाती है, इश्क़ की ख़ुमारी नीलाम न हो सकेगी, ये इश्क़ की बीमारी तिनका तिनका बिखर गया है, इश्क़ अगर तुम्हारा समेट लो इसे लबों की खामोशी तोड़कर खुद को भी संवरता पाओगें इंतज़ार हदों में ही हो तो हद में रहना बेहद हो जाये,तो फ़ना हो जाना इश्क़ मुक़म्मल मालूम होगा
चाय की बूंदें, मिलती हैं कहानी सुनाती, चमचमाती चाय की चैया, दिल को बहुत सजाती, कभी हल्की, कभी कड़ी, रिश्तों को मिलाए, चाय की मिठास, दिल को बहुत बहुत भाए।
Na ummid tha Na ilzam tha Na friyad tha Na intam tha Na chaht thi Na ibadt thi Na yade thi Na bate thi Na furst thi Na dayar thi Na the hum Na the tun Na mosm tha Na inam tha Na rahe thi Na mukam tha
جیسے پانی گرتا ہے قطرہ قطرہ۔۔۔ وہسے ہی بوند بوند مجھ میں اترے ہو تم۔۔۔ جیسے بارش کا پانی زمیں کی تشنگی کو مٹاتا ہے۔۔۔ ویسے ہی تمہاری قربت میری روح میں بسے ویرانے کو آباد کرتی ہے۔۔
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