असली चेहरा हो,दुनिया का जहाँ,
गंदी निगाहों से महफ़ूज़,खुल कर साँस ले सकूँ।
आज़ाद अपनी ख़ुशियों को महसूस कर,
भूलकर इस दुनिया को,ख्वाबों से गुज़रना चाहती हूँ।
पिंजरे में न क़ैद कर,मै भी उड़ना चाहती हूँ।।
लहरों के साथ सफ़र कर,दूर निकल जाऊ,
रिश्तों को संभालकर,उनको निभा पाऊँ,
जहाँ प्यार, अमन, ऐतेबार हो....
ऐसे नगर से जुड़ना चाहती हूँ।
पिंजरे में न क़ैद कर,मै भी उड़ना चाहती हूँ।।
इन्द्रधनुष के रंगों सा,आकाश में बिखर जाऊँ,
बारिश की बूँदों संग ,सौंधी ख़ुशबू बिखेरती जाऊँ,
जहां गुलज़ार होती थी सुबह,ख़ुशियों के साथ,
उस बचपन में लौटना चाहती हूँ।
पिंजरे में न क़ैद कर,मै भी उड़ना चाहती हूँ।।
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