कोई बचपन के मेरे, वो दिन लौटा दे,
मेरे बीते हुए सारे, पलछिन लौटा दे।
लौटा दे मेरे वो, कुछ दोस्त पुराने ,
मुझे पीपल का वो आलिंगन लौटा दे।
वो गली में कोने की दुकान बुला रही है,
खेतो की ऊंची नीची ढलान बुला रही है
घरों के नंबर से जानते है मुझे शहर में,
वहां पिता से होती, पहचान बुला रही है।
खो जाऊं फिर खलिहानों में मैं,
दरीचे से सूर्य का वो अभिनंदन लौटा दे।
कोई बचपन के मेरे ............
स्वछंद से खेलते थे, हम जिन मैदानों में,
ठंडी सी बहती थी, जहां पुरवाई कानों में।
एक बार फिर से, उसे महसूस कर आऊं,
जो रह गया है बस भूली बिसरी दास्तानों में।
मुझे वो सोंधी मिट्टी की कोई खुशबू लौटा दे,
भीगा दे मन को,वो बारिश रिमझिम लौटा दे।
कोई बचपन के मेरे.............
ठहर जाऊं वहां, मां का दुलार जहां था,
पड़ोसियों में मैत्री भाव और प्यार जहां था,
एक घर में रहते हैं, यहां सब जुदा जुदा,
चौपाल लगती थी, कुटुंब परिवार वहां था।
धुआं है जहन में, और सारे शहर में,
खुला आकाश और छूटा हुआ नशेमन लौटा दे।
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