QUOTES ON #PURANI_YAADEIN

#purani_yaadein quotes

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हाये वो कितना

बेहूदा वक़्त था

जब वो चुपके से

मेरा हाथ अपने हाथ

से छुड़ा रहा था और

मुझसे दूर जा रहा था..!

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10 JUN 2020 AT 8:03

पुरानी यादों को पीछे छोड़ चली हूं जनाब,
सुना है नई यादों की बारिश होने वाली है ।

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22 NOV 2020 AT 20:43

अब कहाँ रही वो "शामें" इस मोबाइल के दौर में,
जब घंटों बैठे-बैठे अपनों के साथ यूँ ही
समय गुजर जाया करता था।।

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7 SEP 2020 AT 10:40

और कोई साथ हो ना हो रात साथ होती है,
इसमें भी सो जा जाएं...रात अपनी होती है..

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18 JUN 2020 AT 20:36

कोई बचपन के मेरे, वो दिन लौटा दे,
मेरे बीते हुए सारे, पलछिन लौटा दे।
लौटा दे मेरे वो, कुछ दोस्त पुराने ,
मुझे पीपल का वो आलिंगन लौटा दे।
वो गली में कोने की दुकान बुला रही है,
खेतो की ऊंची नीची ढलान बुला रही है
घरों के नंबर से जानते है मुझे शहर में,
वहां पिता से होती, पहचान बुला रही है।
खो जाऊं फिर खलिहानों में मैं,
दरीचे से सूर्य का वो अभिनंदन लौटा दे।
कोई बचपन के मेरे ............
स्वछंद से खेलते थे, हम जिन मैदानों में,
ठंडी सी बहती थी, जहां पुरवाई कानों में।
एक बार फिर से, उसे महसूस कर आऊं,
जो रह गया है बस भूली बिसरी दास्तानों में।
मुझे वो सोंधी मिट्टी की कोई खुशबू लौटा दे,
भीगा दे मन को,वो बारिश रिमझिम लौटा दे।
कोई बचपन के मेरे.............
ठहर जाऊं वहां, मां का दुलार जहां था,
पड़ोसियों में मैत्री भाव और प्यार जहां था,
एक घर में रहते हैं, यहां सब जुदा जुदा,
चौपाल लगती थी, कुटुंब परिवार वहां था।
धुआं है जहन में, और सारे शहर में,
खुला आकाश और छूटा हुआ नशेमन लौटा दे।

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15 MAY 2020 AT 1:37

वही जिन्होंने उसका दिल दुखाया था

आज उसे उन्हीं कि याद आ रही है ..

कुछ पुरानी यादें आंखों से बहकर उसका चेहरा भिगा रही हैं ...

हाँ ,
आज उसे उन्हीं की याद आ रही है

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9 FEB 2021 AT 23:22

लोग अक्सर बड़े होकर दोस्तों को भूल जाते हैं।
और इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं दिग्विजय, क्योंकि बड़े होकर लोग स्कूल कहां जाते हैं।

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1 NOV 2020 AT 16:21

"भूल गए"
बिना किसी खिलौने के ही खेल और
मस्ती की पाठशाला हुआ करती थी

भाई बहनों पड़ोसी दोस्तों के साथ गलियों में
छत पर खेलने में बात ही अलग हुआ करती थी

पारले जी, किसमी बार, ऑरेंज वाली टॉफी,और
मूंगफली के भी हिस्से होने में लढाई हुआ करती थी

चूरन में निकले इनाम के पीछे भागने से
घरवालों से डांट भी खूब पड़ा करती थी

दशहरे पर सुबह जलेबी पर भीड़ और
शाम पतंग बेशुमार उड़ा करती थी

भूल रहें हैं बचपन के ये दौर उस जमाने का
जो बिना फ़ोन के लोग दिलों के करीब भी,
खुशियों से भरी दिन और रात हुआ करती थी

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आपने मेरे मन में पुरानी यादें ताजा कर दीं
जिन यादों को मैं कभी मिटा नहीं सकता-2
और आपने इस कदर मेरे दिल में प्यार के रंग भर डाले
जिन रंगों को मैं कभी बदल नहीं सकता

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8 JAN 2019 AT 21:02

मुहँ फेर लेना तुम
मुझे देखकर
पुरानी मोहब्बत हूँ
फिर उभरी
तो कयामत होगी।।

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