ना चांद सी सूरत ना सीरत रखते हैं हम माना मिज़ाज थोड़ा कड़क रखते हैं हम सरल हैं हम या हैं कठिन नहीं जानते पर सबसे अलग अपना अन्दाज़-ए-बयां रखते हैं हम कहते हैं सब गुरूर जिसे उसे आत्मसम्मान और स्वाभिमान कहते हैं हम चढ़ता नहीं हम पर नशा किसी की नशीली आखों का खुद में शराब जैसी शख्सियत रखते हैं हम