माना कि हम आज़ाद है फिर भी हम आज़ाद नहीं,
मिला बेटियों को पंख पर मिली परवाज़ नहीं ।
हक़ मिला समान संविधान में पर सम्मान मिला समान नहीं,
ख़्वाब बुने ऊँचाई छूने के, पर मिला आसमान नहीं ।
अधिनियम 1956 में लिख दिया पैतृक संपत्ति पर बेटियों का भी नाम,
पर ये कागज़ी कार्यवाही से हक़ मिलना आसान नहीं ।
कौन कहता है, देश हमारा संस्कारों की नींव है,
धितकार है ऐसे समाज पर जहाँ बेटियों का सम्मान नहीं ।
उठाओ आवाज़ तुम मेरी बहनों हम तुम्हारे साथ हैं,
अभी तुम्हारे भीतर की लहरों में आया वो उफान नहीं ।
तुम हो योद्धा तुममें ही है बात रानी लक्ष्मी बाई जैसी,
समक्ष तुम्हारे टिकना यूँ किसी शाशक का आसान नहीं ।
मिलता है गौरव गर देश को तुम्हारी मौज़ूदगी भर से,
अपने हिस्से की बात करो, यूँ मिलता इंसाफ का वरदान नहीं ।
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