वो तेरी नीली आँखे अक्सर जो मुझसे बातें किया करती थी भूलता_ही_नहीं वो तेरी पायल की झंकार जो मुझसे मिलने को बेचैन हुआ करती थी भूलता_ही_नहीं वो तेरी गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठ जो मेरा नाम लिया करती थी किसी रोज़ भूलता_ही_नहीं वो तेरे आने से हवा में अलग सी महक जो मुझे तेरी ओर खींचा करती थी भूलता_ही_नहीं वो तेरे दिये जख्म जो आज भी मेरे सीने में चुभते है