अजब वो सख्श है हवाओं से बात करता है
दर्द सहता है जख्मो से प्यार करता है
अजब..............................।
अजनबी शहर मे प्यार का अत्फ है वो
अंजुमन मे हीं सदा रहगुजर सा रहता है
रुसवा हैं वो अब्र का बसिन्दा है
अब्द है वो रब का अत्र सा वो रहता है
आब-ए-आईना उससे हीं चमकता है
आरजू है वो सदा बावफा सा रहता है
लोग करते हैं यहाँ आवाज़ह उसकी
वो फरिश्ता हैं सबो के दिल जिगर पे रहता है
राजीव...
अत्फ...भेट
अब्र..बादल
अब्द..परमात्मा का दास
अत्र..सचगंध
आवाजह..चर्चा
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