खुद को खुद में ढूंढ लूं ,
कुछ ख्वाबों में मिलूं...
कुछ हकीकत से जूझती फीरूं,
कुछ अक्स खुद के छोड़ आई...
उस अतीत के गुजरे पन्नों में!
कुछ बिखरी सी , कुछ अधूरी सी ....
फिर भी खुद में,
मैं पूरी सी .....
मन में आशाओं का सार लिए,
उन गुमराह रास्तों का भार लिए..
चल पड़ी हूं उन मंजिल की ओर,
जो गुम हैं कहीं उन ख्वाब तले!!
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