गरीब लोग दान के मोहताज नहीं होते...ज़रूरी ये है कि उनके साथ प्यार बांटा जाए..उन्हें अपनाया जाए..उनका भी सम्मान किया
जाए..उनके दुख सुख को बांटा जाए..उनसे दोस्ती की जाए।
नहीं तो ज्यादातर तो वहीं लोग गरीबों को दान देते हुए नजर आते है, जो लोग खुद दरिद्र लोगो के साथ हीनता का व्यवहार करते है...जो जाती धर्म को लेकर भेदभाव करते है,जो एक गरीब और दरिद्र के घर में बैठकर नहीं खा सकते।
हम जब कोई ब्रांडेड कपड़ा खरीदते है, वहा हम मोल भाव नहीं करते..पर जब हम सब्जी मंडी में सब्जी खरीदने जाते है, तब एक गरीब और बूढ़े किसान के साथ मोल भाव करने लग जाते है, जब कि खाना हमारे लिए सबसे अहम है, हम बिना ब्रांडेड चीजो के जिंदा रह सकते है, पर क्या हम बिना खाने के जिंदा रह सकते है?? ये सोचने वाली बात है...
ये ज़रूरी नहीं कि सिर्फ कोई धनवान व्यक्ति ही गरीब की मदत कर सकता है..कुछ लोग तो पैसों के रहते हुए भी गरीब होते है..जिनके पास प्यार नहीं..जिसके पास सब कुछ रहते हुए भी, कभी खुश नहीं ..कोई कितना भी गरीब क्यों ना हो, अगर वो हर हाल में खुश रहना जानता है और प्यार की कदर करना जानता है...वो सच्चे अर्थ में धनवान होता है।जो सच्चे अर्थ में धनवान होता है, उसे एक कुटिया में भी खुशी का अनुभव होता है। गरीब तो वो होते है जो महलों में रहकर भी, दुखी रहते है,और संतोष के सुख से अनजान....
-Sushmita Bhagat
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