QUOTES ON #POEMSOFIG

#poemsofig quotes

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21 DEC 2016 AT 10:25

Ek tere saath se qaaynat badalne ka jazbaa rahkte hain...
Bas tum mera khudaa bane rahna...!


एक तेरे साथ से क़ायनात बदलने का जज़्बा रखते हैं..
बस तुम मेरा ख़ुदा बने रहना..!

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20 DEC 2016 AT 0:01

Fir wahi December ki 20 taarikh..
Saal kahtm hone se pehle..
Aur sab khatm hone ke baad bhi..
Kuchh rah gaya hai..

Kuchh baaki hai..
Jalna..
Aur fir jal ke bujhna..

Raakh ban ke rahna..
Aur thoda sa udna..
Bina kisi aankh mein chubhe..

Abhi bhi Baaki..
Thoda sa hun mai tujhme..
Thodi si hai tu mujhme..!

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2 APR 2017 AT 18:27

ऊपरवाले, कुंती का क्यूँ ऐसा भाग्य बनाया?
पाण्डवों और कर्ण में क्यूँ इतना अन्तर छाया?
दुर्योधन का ऋण सर पे कुछ ऐसे चढ़कर आया,
कि कुरुक्षेत्र में कर्ण ने भाइयों पे बाण चलाया।

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10 JAN 2017 AT 9:01

मुझको ज्यादा नहीं तू सता पायेगा,
मुझसे यूँ दूर तू कब तलक जायेगा,
चाहे ठुकराए पर मुझको है अब यकीं
मेरा है, मुझ तलक लौटकर आयेगा।
#AkshayAmritPoetry

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9 APR 2017 AT 14:45

थर्मामीटर में हाई तापमान दे गया,
बिस्तर पे कुछ दिन आराम दे गया,
बुखार ने तोड़ा है बदन को इतना,
पैरासिटामोल की दुकान दे गया।

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2 APR 2017 AT 16:30

रेगिस्तां और सूर्य ने मिलकर ऐसा जाल बिछाया है,
थके, प्यासे कण्ठ को फिर जल नज़र सा आया है।
मृगतृष्णा ही ऐसी है कि कोई नहीं बच पाया है,
दोनों ने हंसकर लोगों को अक्सर मूर्ख बनाया है।

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5 APR 2017 AT 13:38

पैगाम भेज रहे हैं मर्द, 'तलाक़ तलाक़ तलाक़',

औरतों की क्या इतनी ही रह गयी है औक़ात?

हुकूमत, अब तो सुन लो ज़रा बीवियों की बात,

ज़्यादा ताक़त देकर उनको, सुधारो ये हालात।

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6 APR 2017 AT 13:23

"चलो चलें देखें मूवी बोरिंग सी कोई हम",
मुझको कॉल करके वो ये बात कहती है।
मैंने हैराँ होकर पूछा "क्या बोलती तुम?"
बोला उसने "तुम्हें क्या वहाँ फ़िल्म देखनी है?"


मैं फिर मुस्कुरा दिया।

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3 APR 2017 AT 18:43

(एक छोटे बच्चे की नज़रों से)

इक बगल में चाँद होगा, इक बगल में रोटियाँ,
चीनी लेकर चलती होंगी तार पे कुछ चीटियाँ।
गिन कर उनको मैं, फिरसे कमरे की ओर देखूँगा,
"क्यों नहीं माँ आयीं अभी तक", बस यही फिर सोचूंगा।
माँ अपनी चुन्नी को सर पर लेके बाहर आएँगी,
कीमती कुछ आंसुओं को गालों से हटाएंगी।
रोशनी जो चाँद की उन चोटों को चमकाएगी,
लाल उंगलियाँ चेहरे पे माँ के नजर आ जाएँगी।
मुझको समझ ना आएगा, ये घाव कहाँ से आए हैं।
"कमरे में तो पापा ही थे, फिर क्यों माँ घबराए है"?
तोड़ रोटियों को, इक टुकड़ा मुझको वो खिलाएँगी।
आज नहीं तंग करूंगा उसको, क्या माँ खुश हो जाएँगी?

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29 MAR 2017 AT 11:29

इन अखियों को आज रोने दे,
गालों पे अश्कों की माला पिरोने दे,
निकल जाने दे अब दिल का गुबार "अमन",
हर इक कतरे से गम-ए-जहां धोने दे।

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