कभी मिलो की जब वक्त की पैमाइश न हो
सिर्फ हम हो और किसी के होने की गुंजाइश न हो
ऑंख बन्द कर चलेंगे उस छितिज पर
जहाँ से आसमा के तारे, असीम समंदर, मस्ती में उड़ते पंछी दिखते हो
ठंडी ठंडी हवा हो, रेत भरा किनारा हो
ओर साथ तुम्हारा हो
न लौट जाने की फिक्र हो.... बस बैठे रहे
और खो जाए इसी में
ये आसमा, ये टिमटिमाते तारे, चाँद, समंदर, ये रेत
तुम, में... मानो सब एक हो गए है
सब एक-दूसरे में मिल गये है
तुम मिलोगी न...?
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