तेरे अंजुमन के दर्द का हूं हमदर्द इस कदर,
हमसफ़र बनूं की मुकद्दर बात एक ही है,
दूरियां कभी दूरियां ना लगे इस कदर,
छु लूं तुझे रूह से बात एक ही है,
तेरे हर अश्क को अपने बना लूं इस कदर,
तूं नहीं में बरसू हर रात बात एक ही है,
शामिल कर तूं मुझे खुद में इस कदर,
तेरी हर मुश्किल से में मिलूं बात एक ही है,
तेरे हर ख़्वाब की तामील हो इस कदर
एहसास है या मेरे जज़्बात बात एक ही है,
मिल पाऊं तुझे ये जुस्तजू नहीं इस कदर
मेरी लकीरों में हो तेरा साथ बात एक ही है,
तेरे अंजुमन के दर्द का हूं हमदर्द इस कदर,
हमसफ़र बनूं की मुकद्दर बात एक ही है,
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