दर्द कुछ यूँ है मेरा़.. 💔
मेरे शब्द आज मुझे ही चुबते हैं चुप हूँ कि दर्द बहुत है
हर वक़्त डर लगता है कि कहीं ख़ुद को ना खो दूँ
कितना सोचूँ उसे जो मेरी जिन्दगी से जा चुका हैं
कितना रोक लू खुदको पर सुकून उसी में आता है
अकेला बैठ जाऊँ तो आँसू ना निकल जाये
कहीं साथ जाऊं लोगों के, तो उसका जिक्र ना निकल आए
ये डर मुझे किसी रास्ते ना मिल जाए
इतना प्यार ही क्यूँ किया उसे, अब इस तड़प में कहीं मुसाफ़िर ना बन जाए ...
उसको अपना बनाने के सफर में, मैं ऐसा क्या कर जाऊँ
वो पल जिसमें तू है मेरा, वो सपना मैं ख़ुद को फ़िर कैसे दिखाऊ..
आज भी नहीं वो कल भी नहीं, ये हक़ीक़त इस दिल को कैसे समझाऊ
हर वक़्त मैं तड़पु उसे देखने को तरसु, दो पल मिले उधार तो उस पल में ही मर जाऊँ..
मेरा अन्त है वो वो मेरा कल भी वो, आज में उसको मैं ढूँढ ना पाउ..
ये जो दर्द है मेरा अब किसको सुनाऊँ इन आँसुओं में कब तक ख़ुद को सताऊँ
चेहरा छिपाऊँ या दर्द छिपाऊँ हर पल का वो मंजर उन्हें कैसे बताउँ
सब भूलना चाहूँ उन्हें देखना चाहूँ कोई दुआ लग जाए जो मैं
उन्हें देखता जाऊँ
उन्हें बोलता जाऊँ बस बोलता जाऊँ, इन आँसुओं में कब तक खुद को सताऊँ
इन आँसुओं में कब तक खुद को सताऊँ....
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