शीर्षक - छाँव
पैर जब तपती सड़क पर पड़े मज़दूरों के तब पेड़ की छाँव ने उन्हें राहत पहुँचाई।
जब शहर की आबों-हवा में फैली गंदगी तब मज़दूरों को अपने गाँव की याद आई।
बच्चे घर-घर में जब हुए कैद,तब उन्हें दादी-नानी के अनेकों किस्सों ने खुशी पहुँचाई।
जो तरस रहे थे वृद्ध दो पल अपनों के साथ के लिए,उन्हें ये कोरोना साथ ले आई।
कहीं माता के आँचल की छाँव मिली तो कहीं,ज़िंदगी ने फिर एक नई राह दिखलाई।
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