कुछ आसूंँओं के घुट,तो कुछ बातों का जहर
प्यार में ब-कायदा पीने को दिया जाता है।
भीड़ के आगे अक्सर अपनों को तन्हां छोड़,
ज़िंदगी के मज़े बड़े शौक से लिया जाता है।
सकूंँ की फरमाईश जब जब करो,
रुसवाइयों का आगाज किया जाता है।
और चांँदनी रात के सबनम में प्यार निखरने को जब आए,
फासलों पर फैसले तभी जुबांँ से,नजाने क्यों लिया जाता है।
इसे हाथों की लकीरें कहूंँ या मोहब्बत की विडंबना,
जिससे दूर होकर ही मर मर के जिया जाता है।
और गुज़र जाता है जब ये दौर मोहब्बत का,
अफसोस से बोझिल सांँसों को उसके हस्र पर छोड़ दिया जाता है।
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