पंछी हूँ
पंछी हूँ, बाग़ बग़ीचों में,
करती रहती हूँ स्वच्छंद विहार मैं।
किसी और पर नहीं,
अपने पंख पर करती हूँ ऐतबार मैं।।
न धन है न दौलत कोई,
और न ही यहाँ मेरी कोई आय है।
घास फूस का घर है,
केवल प्रसन्नता मेरा अभिप्राय है।।
फुदकती ही रहती हूँ मैं,
उडती ही रहती हूँ मैं हर हाल मे।
निश्छल हूँ, अबोध हूं,
फँस जाती हूँ कभी कभी जाल में।।
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