ऊँची इमारतों से मकां मेरा घिर गया, ये चालाकियां,ये पैंतरे यहां इज्ज़तदारो़ के अब तो मेरे अन्दर का इन्सां भी जैसे मर गया है जी़न्दगी बोहत आसान फ़ैज़,हो गर दोस्त ये जो कहता था ज़ालिम आज ख़ुद न जाने किघर गया
ऊँची इमारतों से शहर मेरा भर गया, हर शख्स अपनी ही मुश्किलों में घिर गया, मुद्दतों से जिस शहर ने सूनी सड़के नही देखी, सुना है वहाँ एक शख्स अकेलेपन से मर गया।
इस बात की ओर इशारा करती है कि वहाँ सब एक दूसरे से अनजान है, कोई सुकून की नींद नही सोता है, भागदौड़ की जिंदगी मे वो अपनो के साथ समय व्यतीत नही कर पाते है।।।
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