कितना ही करो तुम अनदेखा, तुम्हे दिल में रखूँ तो क्या हर्ज है,
चोरी-चोरी चुपके-चुपके, देखूँ तुम्हे जी भर के तो क्या हर्ज है?
अगर वो हो जाये कभी बीमार तो बेशक पारा मेरा चढ़ता है,
हो अगर वो मायूस कभी, बेचैन मेरा दिल हो तो क्या हर्ज है?
खुद के ज्यादा से उसका जन्मदिन शिद्दत से याद रखता हूँ,
सबसे पहले विश करूँ उसे, ऐसा ख्वाब रखूँ तो क्या हर्ज है?
वो किसी ओर को देख कर यूँ ही अगर मुस्कुराती भी है तो,
लाज़मी धड़कनें मेरे दिल की बढ़े तो किसी को क्या हर्ज है?
तुम क्या चाहती क्या करती क्या तुम्हे पसंद है, मालूम मुझे,
हूबहू मैं खुद को तुम्हारी तरह बना लूँ इसमे तो क्या हर्ज है।
ख्वाबों में तुम्हारे अगर आ जाये कोई ओर भूले से जब कभी,
पहलू बदलते बदलते, नींद मेरी उड़ जाती है तो क्या हर्ज है?
इजहार के हजारों तरीके सोचे की कह दूँ मेरे दिल की बात
सरेआम करने से बेहतर की गुपचुप जी लूँ तो क्या हर्ज है?
रहेगा अफसोस ताउम्र बेशक की चाहत अधूरी रह जानी है,
दूँगा तसल्ली खुद को की चाहा टूट कर तुम्हें तो क्या हर्ज है?
पता तो है कि तुम कभी नहीं चाहेगी मुझे किसी भी सूरत में,
फिर भी तुम्हे ख्वाबों में जिंदगी भर सजा लूँ तो क्या हर्ज है?
मेरा दिल जानता है कि यह ख़ालिस एकतरफा प्यार है 'राज'
फिर भी इस प्यार को ताउम्र शिद्दत से निभाहुँ तो क्या हर्ज है? _राज सोनी
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