वे रास्ते
तुम्हे फिर से खुले मिलेंगे
जहां पर रहता था मैं।
सर्द, अंधेरी, कच्ची और वीरान
पगडंडी की दायीं और
पता नहीं क्या खोजता था मैं?
मेरी बूढ़ी हो चुकी मौन आंखों की
काली पुतलियों पर
उगे हुए मोतियाबिंद के सफेद जाले में
उलझे हुए थे कई सवाल
और जिनके प्रतिउत्तर के इंतज़ार में
मैंने जिया है अपना जीवन।
अब उन रास्तों पर रहते हैं
धुंध में भीगे हुए
मेरे कदमों के गीले निशान।
-