मेरे अंदर एक और भी दुनिया है,
एक अलग, अजीब सी दुनिया,
डरावनी और महफूज़ भी नहीं।
उसमें मैं हूं, और तुम भी हो,
लेकिन तुम्हारी चाहत नहीं और तुम मुहाफिज भी नहीं,
वहां एक डर है, मुसलसल,
खौफ़, जैसे तुमसे, सबसे।।
मेरे अंदर जो एक अजीब सी दुनिया है,
डरावनी और महफूज़ भी नहीं।
उसमें शब है, और आफताब भी है,
लेकिन शब बेज़ार, और आफताब शीतल भी नहीं,
वहां कुछ गम सा है, गहरा,
कयामत,जैसे आज, अभी।।
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