निकला तो छाव में था,धूप फिर हो गई
किया तो था काम अच्छा, बदनामी फिर हो गई ।
खोया हूं अपनी दुनिया में,अंधेरों से मुलाकात हो गई
उठा था सोकर सुबह,रात फिर हो गई ।
तुझे चाहूं कितना भी,कमी फिर हो गई
अब तू मुझे याद है नहीं, याददाश्त फिर खो गई ।
जिसको पसन्द था साथ मेरा,वो किसी और की हो गई
इल्जाम लगते है मुझे पर,बुराई फिर हो गई ।
बदल नहीं सकता खुद को, शराफत खत्म हो गई
पहले से हूं और मजबूत,प्यार से नफरत ही हो गई ।
जिंदगी किस तरह कटेंगी,शामे उदास सी हो गई
अब किसी से मतलब ही नहीं,अब राहत सी हो गई ।
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