तू मजहब की बात ना कर,
आजकल महकमें में क्रांति बहुत है,
तू धर्म का इंकलाब जो बुलंद करेगा,
तो फिर होनी अशांति बहुत है,
तूने अगर करनी है भक्ति तो वही कर,
जो है सपने सियासी के तो फिर सियासत ही कर,
अगर नाम भक्ति का सियासत ही तो फिर वो कर,
पर ना कर दोनों का पतन, मिला कर एक दूजे से,
फिर ना सियासत बचेगी और छिन जाएगा लोगों से भी उनका धर्म,
ऐ- सियासी वाशिंदे जीत ले हुक़ूमत चाहे हज़ारों दफा,
हार जाए जो भारत अपना तू ना कर कोई ऐसा कर्म...✍️
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