तू दुर्गा है, तू काली है,
कर खप्पर-खड्ग धारी है,
तू आज की बर्बर दुनिया में,
मानवता की रखवाली है,
अपना होकर अपनों पर,
करे ज़ुल्म उसे स्वीकार न तू,
मनुष्य होकर भी अत्याचारी हो,
उसको बढ़ के ललकार दे तू,
तू ना दासी है, तू ना अबला है,
तू ना कल की बेचारी नारी है,
स्वयं अधर्मी महिषासुर का,
तू मर्दन करने वाली,
तू जननी है, तू ममता है,
तू भी जीने की अधिकारी है|
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