तुम्हारी जिंदगी में,
मेरी नामौजूदगी से तुम्हें फर्क नहीं पड़ता
जो यूँ एक दिन तो क्या, हफ्तेभर भी बात ना करूँ
तो तुम्हें याद मेरी आती नहीं
तो इस ना पड़ने वाले फर्क को
और ना आने वाली याद को,
यूँ ही तुम बरकरार रखना।।
इस दिल में तुम हो..
ये जानकर भी तुम्हारा अंजान बनना
यूँ तो इंतजार हमेशा रहेगा तुम्हारा
क्यूँ कि?
तुम्हारी सूरत से नहीं सीरत से मोहब्बत है मुझे
ये समझ कर भी तुम्हारा नासमझ बनना
तो सब जानकर भी अंजान
और समझकर भी अपनी नासमझ को,
यूँ ही तुम बरकरार रखना।।
क्यूँ कि?
जो पड़ने लगा फर्क तुम्हें और आने लगी याद मेरी
तो यूँ हर बात पर तुम्हारा अंजान बनना
और समझकर सब कुछ नासमझ बनना,
मुश्किल हो जायेगा
तो अपने इस लहजे को बरकार रखना।।
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