प्रेम की पराकाष्ठा क्या है जिसके कगार अंधियारे होते हैं डूब जाती है संवेदनाएँ तब निराशा की नौका ले कर अंधेरे कगारो तक आती हूँ तो उन कगारों पर तुम्हे पाती हूँ भावनाओं से रिक्त नेत्र लिए अंधेरे छुपा लेतें हैं तुम्हारे चेहरे के भाव तुम सुन नहीं पाते निश्वासों की पीर परिधिहीन इस प्रेम की गाथा मैं तुम्हें सुना न सकूँगी कभी मैं धरा तुम व्योम असिमीत है यह अन्तर मैं तुम्हें बता न सकूँगी कभी प्रेम की पराकाष्ठा लिए उन अंधेरों का अभिन्न हिस्सा बन जाऊँगी
समय समय पर अपनी डीपी बदल लिया करो उसी को देखकर तो हम तुम्हारा मिज़ाज जाँचते है
आज भी तुम्हारी तस्वीर को देखकर अपने आप को ढूंढता हूं जैसे बिहार में मजदूर करखाना ढूंढता हो
जब अपने आप को नही खोज पाता हूं तुझमे तो खटखटाने लगता हूं मैं दूसरे का दरवाजा जैसे लोगो ने राजद(RJD) को मौका देना चाहा लेकिन आज भी इंतजार है तुम्हारे लौट आने का जैसे ऊमीद लगाते है नीतीश सरकार के शुरुवाती 5साल के शासन का
और आखरी बात, तुम शहर की थकान वाली डीपी मत लगाया करो गाँव की हरियाली जैसी डीपी लगाओ जिससे हमारे अंदर भी रोमांटिक रक्त-संचार होता रहे जैसे चुनावी रैली में 15लाख रुपया या 10 लाख नौकरी सुनते समय होता है
Jahan apano ki yad na aaye, Vo tanhayi kiss kam ki. Bigade risten na bane, To Vo khudayi kiss kam ki. Beshak Hume apani manjil tak jana hai, Par jahan se Apane na dikhe, vo unchaayi kiss kam ki.
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