हवायें, नदियां, सूरज, पृथ्वी सब वैसे ही रहते है,
बदले तारीख़ तो उम्मीद नयी हम भरते हैं,
रंग, रूप, कद,काठी,दिल,दिमाग सब वैसे ही तो रहते है,
आदतें बदल हम नये इंसान बनने की पुरज़ोर कोशिश करते है,
आयो बंधन तोड़े, दंभ दबोचे लगाए अहंकार की क्लास,
ख़ुद झुककर घोले नये वर्ष में एक नई मिठास
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