फिर से मुझे अपना 'इकलौता सपना' याद आया
और आज फिर मुझे आपकी बहुत याद आई...
हमारा आशियाँ, गुज़ारे ढ़ेरों लम्हें और वही जज़्बात
मुद्दतों बाद आज फिर से मेरी आँखों में जगमगाया
बीते इन कुछ सालों में कितना कुछ बदल गया है न!
वो चेहरा, वो अदायें, वो तेवर, आपकी पसंद और आप
ख़ैर, वक़्त के साथ ख़ुद को बदल लेना जायज़ है
मगर इस तरह से भी बदल जाना कहाँ का इंसाफ़ है?
मैं खड़ी उसी चौराहे पर आज भी आपकी राह तकती हूँ
टूटे इस दिल में उम्मीदों के टुकड़ें लेकर सांत्वना देती हूँ
खुद से ही खुद को समझाती हूँ, तड़पाती हूँ, रूलाती हूँ
अब भी ऐसा लगता है कि आप एक दिन लौट आयेंगे!
और मुझे आप एक बार फिर से 'वो सपना' दिखलायेंगें
हालाँकि, जानती हूँ मैं ये भी एक सपना ही है
जिसे हर रोज, हर पल मर-मर कर जीती हूँ मैं
और इस सपने का टूटना नसीब है बिल्कुल मेरी तरह...
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