देखन लगत उस रब की माया....
सब मिले खोये हुए माया में....
पर उस रब के एहसासों मैं खोया कोई नज़र ना आया..
जिसे देख कर कबीरा मन ही मन गुनगुनाया...
की कहत कबीर
बेकार है उस रब की बनाई ये माया....
ओर क्या खेल है उस मालिक का....
जिसे कोई समझ न पाया....
तभी तो बनाने वाले को भूल कर....
माया के पीछे हर इंसान है भरमाया....
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