सुबह की खूबसूरत धूप जब निकलती है,
तो मैं सोचती हूं तुम्हें.
शाम को हवा का झोंका छू कर मुझे जब निकलता है,
तो मैं सोचती हूं तुम्हें.
ख्वाब में हकीकत बनकर जब आते हो,
तो मैं सोचती हूं तुम्हें.
वक्त बेवक्त कभी जब नींद से जग जाती हूं,
तो मैं सोचती हूं तुम्हें.
नींदों पर जब ख्वाबों का पहरा होता है,
तो मैं सोचती हूं तुम्हे.
खुली जुल्फों में, लगा कर बिंदी जब देखती हूं आइना,
तो मैं सोचती हूं तुम्हें.
हाथो में लगी महंदी जब भी कभी महकती है
तो मैं सोचती हूं तुम्हें.
तुम्हारी यादों से चुरा के कुछ वक्त जब बैठती हूं अकेले
तो मैं सोचती हूं तुम्हें.
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