मैं अगर मैं ही हूँ, तो फिर तू क्या है,
मुझ में बसी तेरी ये रंग ओ बू क्या है।
एक मुद्दत से नाराज हैं हम अगर,
खामोशी कर रही ये गुफ़्तगू क्या है।
बेचैन कर देती है बज़्म आजकल
फिर तेरी सोहबत में ये सुकूं क्या है।
है उजड़ा आशियाँ अंधेरों भरा ये,
तेरे होने से रोशनी सी चारसू क्या है।
पामाल हो चुकी हर ख्वाहिश मिरी,
तुझे देख मचलती वो जुस्तजू क्या है।
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