"ख्याल पुराना सा"
मुझे तो वो पुराना वाला रिवाज भी अच्छा लगता है,
सर पे तुम्हारे दुप्पटा मुझे आज भी अच्छा लगता है।
छूना सारी ऊंचाइयां ,हुनर तो तुम भी लाजवाब रखती हो,
घर की लक्ष्मी बनी रहो तुम ,ये ताज भी अच्छा लगता है।
कहाँ मिलेगा दिन भर की थकान में प्यार तेरी खुशियों का,
तेरे हाथों की चाय से दिन का ,आगाज भी अच्छा लगता है।
कौन कहता है कम्बख्त लड़कियाँ आसमाँ नहीं छू सकती,
सुने हज़ारों की भीड़ तुम्हें ,वो आवाज भी अच्छा लगता है।
चहचहाना चिड़ियों सा बिन मौसम बरसात सा लगता है,
घर को खुश रखने का तेरा ,अंदाज़ भी अच्छा लगता है।
बेच कर रख दिया है इंसानियत इन धर्म के ठेकेदारों ने ,
तुम्हें पसंद हों श्री राम तो ,मुझे नमाज भी अच्छा लगता है।
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