मुझसे जो हो सकता था,वह सब कर आई हूं मैं l
पिछली मोड़ पर मुश्किलों से लड़कर आई हूं मैं l
बहुत देखे खेल, बहुत खेले खिलौनों से
गैरों ने ना होकर मारा,अपनों ने अपने होने से l
कमीगाह से ऐसे ही गुजर कर आई हूं मैं l
कभी मिलकर आई फूलों से,कभी राहें सजाई कांटों से
कभी शोर में खुद को खो दिया,कभी जीत आई सन्नाटों से l
भीड़ में हर पल ऐसे ही बसर कर आई हूं मैं l
पिछला पन्ना छोड़ चुकी अब,मंजिलों से नाता जोड़ चुकी अब
जो भी हो देखा जाएगा , सूखी डाली तोड़ चुकी अब l
चलती हूं,अपने अतीत में काफी ठहर कर आई हूं मैं l
-