यूँ तो अक्सर वो मुझे देखा करता था,
बात करने के बहाने ढूँढा करता था..
जो देख लूँ मैं उसको तो नज़रे चुरा लेता था,
करुँ जो बात तो बातों में घुल जाया करता था..
पर उस दिन.....
उसके लबों पे ख़ामोशी थी और हर रोज की तरह आँखों में ढेर सारी अनकही बातें..
निगाहेँ उसकी मुझे पर ही रुकी थी,
आँखें मेरी भी उस रोज भरी थीं..
खामोशियाँ उसकी मुझे चुभ सी रही थीं पर लब ख़ामोश थे,
ना जाने अब कब मिलेगा ज़हन में कुछ ऐसे ही सवालात थे..
आँखें थी आंशुओं से भरी,अनकही बातों से भरा दिल था,
ये बात तब की है जब स्कूल का आखिरी दिन था..
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